आखिर क्यों रूठा मेरा श्याम

श्याम तेरे मैं दर पे खड़ा हूँ
दर्शन को तेरे आया हूँ
चरणों में मैं तेरे अर्पण
खाली झोली लाया हूँ
दर्शन को तेरे आया हूँ।।

कहाँ गए संग जो बिताये दिन
कैसे कोई जिए श्याम तेरे बिन
ओ श्याम तुझे ढूंढू मैं कहाँ
तेरे बिना सूना है जहां
कौन भला दुनिया में तेरे बिना जी सके
कोई कह दे क्यों रूठा मेरा श्याम
आखिर क्यों रूठा मेरा श्याम।।

सूरज की किरणों से पानी के झरनो से
भी है ज़्यादा सुन्दर देखो देखो मेरा श्याम
पीपल की छइयां से ठंडी पुरवैया से
भी है ज़्यादा शीतल देखो देखो मेरा श्याम
ना भूल जाना लौट के आना
कौन भला दुनिया में तेरे बिना जी सके
कोई कह दे क्यों रूठा मेरा श्याम
आखिर क्यों रूठा मेरा श्याम।।

दर की ठोकर खाई दुनिया ने दी रुस्वाई
फिर भी ना ठहरा मैं तो पहुंचा तेरे द्वार
सच ही तो कहता आया झूठ मैं तो सेहत आया
अब तो लगा दे प्रभु नैया मेरी पार
हारे का सहारा तू सबसे है मुझे प्यारा तू
कौन भला दुनिया में तेरे बिना जी सके
कोई कह दे क्यों रूठा मेरा श्याम
आखिर क्यों रूठा मेरा श्याम।।

आंखों से ना बोले तू होंठों से न बोले तू
मन की मेरी बातों को तू मन से सुने
मैं तो अनाड़ी था हाँ मैं भिखारी था
झोली जो फैलाई मैंने भर दी तूने
फिर क्यों नाराज़ है तू मेरा आगाज़ है
कौन बना दुनिया में तेरे बिना जी सके
कोई कह दे क्यों रूठा मेरा श्याम
आखिर क्यों रूठा मेरा श्याम।।

Leave a Comment