फागुन के रंग उड़े पुरवा के संग चले,
चुनर के संग उड़े साड़ी रे,
देखो आई बसंत मतवारी रे,
देखो आई बसन्त मतवारी रे।।
सरसों के फूल खिले खेत भये न्यारे,
सरसों के फूल खिले खेत भये न्यारे,
धरती दुलहनिया को अम्बर निहारे,
अखियन की लाज रखी फूलों ने मांग भरी,
भँवरों ने आरती उतारी रे,
देखो आई बसन्त मतवारी रे।।
अम्बवा बोरा गये रे महकी अमराई,
अम्बवा बोरा गये रे महकी अमराई,
बागन कोयलिया ने छेड़ी शहनाई,
शीतल समीर चली गाँव नगर गली गली,
फिर से उठी वन में फुलवारी रे,
देखो आई बसन्त मतवारी रे।।
कान्हा ने मधुबन में छेड़ी मुरलियाँ,
राधा की छनन छनन बाजे पायलिया,
पनघट पे गाँव चले तन मन के छाव तले,
सखियों ने भरी पिचकारी रे,
देखो आई बसन्त मतवारी रे।।
फागुन के रंग उड़े पुरवा के संग चले,
चुनर के संग उड़े साड़ी रे,
देखो आई बसंत मतवारी रे,
देखो आई बसन्त मतवारी रे।।