हरी ने हिये नहीं धारा रे

हरी ने हिये नहीं धारा रे राम ने हिये नै धारा रे

Hari Ne Hiye Nahi Dhara Re Ram Ne Hiye Ne Dhara Re

राम नाम में अलसी और भोजन में होशियार
तुलसी ऐसे जीव को भाई बार बार धिक्कार।।

हरी ने हिये नहीं धारा रे ,
राम ने हिये नै धारा रे ।
वो नर पशु समान ज्यांरा धूड़ जमारा रे
वो नर पशु समान ज्यांरा धूड़ जमारा रे
हरी ने हिये नहीं धारा रे ,
राम ने हिये नै धारा रे ॥

नैण से निरख्या नहीं नन्दा ,
नैण से निरख्या नहीं नन्दा ।
उन नर केरा नैण कहिजे मोर पंख चन्दा
उन नर केरा नैण कहिजे मोर पंख चन्दा।।
हरी ने हिये नहीं धारा रे ,
राम ने हिये नै धारा रे
वो नर पशु समान ज्यांरा धूड़ जमारा रे।।

कान से सुणी नहीं कथा ,
कान से सुणी नहीं कथा ।
उण नर केरा कान कहिजे कीड़ी दर जैसा
उण नर केरा कान कहिजे कीड़ी दर जैसा
हरी ने हिये नहीं धारा रे ,
राम ने हिये नै धारा रे
वो नर पशु समान ज्यांरा धूड़ जमारा रे।।

हाथ से फेरी नहीं माळा ,
हाथ से फेरी नहीं माळा
उण नर केरा हाथ कहिजे ,वृक्षन रा डाला
उण नर केरा हाथ कहिजे ,वृक्षन रा डाला
हरी ने हिये नहीं धारा रे ,
राम ने हिये नै धारा रे
वो नर पशु समान ज्यांरा धूड़ जमारा रे।।

पाँव से चल्या नहीं गुरु पासा ,
पाँव से चल्या नहीं गुरु पासा ।
उण नर केरा पाँव कहिजे ,देवल थम्ब जैसा
हरी ने हिये नहीं धारा रे ,
राम ने हिये नै धारा रे
वो नर पशु समान ज्यांरा धूड़ जमारा रे।।

हरि का भजन नहीं करता ,
राम का भजन नहीं करता ।
राम लाल कहे जगत में बंदर ज्यूं फिरता
राम लाल कहे जगत में बंदर ज्यूं फिरता
हरी ने हिये नहीं धारा रे ,
राम ने हिये नै धारा रे
वो नर पशु समान ज्यांरा धूड़ जमारा रे।।

Hari Ne Hiye Nahi Dhara Re Ram Ne Hiye Ne Dhara Re

इन राजस्थानी भजन को भी देखे –

Leave a Comment