मेरे जर जर हैं पाँव संभालो हरी ,
अपने चरणों की छाँव बिठा लो हरी,
मेरे जर जर हैं पाँव संभालो हरी ।।
माया ममता की गलियों में भटका हुआ,
मैं हू तृष्णा के पिंजरे में अटका हुआ,
डाला विषियों ने घाव निकालो हरी,
मेरे जर जर है पाँव संभालो हरी,
मेरे जर जर हैं पाँव संभालो हरी ।।
गहरी नदिया की लहरें दीवानी हुई,
टूटे चप्पू पतवार पुरानी हुई,
अब ये डूबेगी नाव बचालो हरी,
मेरे जर जर है पाँव संभालो हरी,
मेरे जर जर हैं पाँव संभालो हरी ।।
कोई पथ ना किसी ने सुझाया मुझे,
फिर भी देखो कहाँ खींच लाया मुझे,
तुमसे मिलने का चाव मिला लो हरी ,
अपने चरणों की छाँव बिठा लो हरी,
मेरे जर जर है पाँव संभालो हरी,
मेरे जर जर हैं पाँव संभालो हरी ।।
मन को मुरली की धुन का सहारा मिले,
तन को यमुना का शीतल किनारा मिले,
हमको वृंदावन धाम बसा लो हरी ,
अपने चरणों की छाँव बिठा लो हरी ,
मेरे जर जर है पाँव संभालो हरी,
मेरे जर जर हैं पाँव संभालो हरी ।।
मेरे जर जर हैं पाँव संभालो हरी ,
अपने चरणों की छाँव बिठा लो हरी,
मेरे जर जर हैं पाँव संभालो हरी ।।
सिंगर – चित्र विचित्राजी महाराज