ना ऐसा दरबार और ना ऐसा श्रृंगार

ना ऐसा दरबार और ना ऐसा श्रृंगार
और ना है लखदातार बाबा श्याम धणी जैसा
ओ बाबा श्याम धणी जैसा
ना ऐसा दरबार………………….

बाबा मेरे शीश के दानी खाटू नगरी में बिराजे
घर घर में ज्योत जले है दुनिया में डंका बाजे
इनकी महिमा सबसे न्यारी पल में भरते भण्डार
ना ऐसा दरबार…………………..

जो हार के खाटू आता सीने से उसको लगाते
दे मोरछड़ी का झाड़ा सोइ तकदीर जगाते
नाव थोड़ी सी जो डोले कर देते भव से पार
ना ऐसा दरबार………………..

मेरे श्याम से लगन लगा लो
गुलशन जीवन का खिलेगा
जो कभी मिला ना पहले तुमको वो सुख भी मिलेगा
तेरा सोनी कैसे भूले बाबा तेरे ये उपकार
ना ऐसा दरबार………………….

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