रामायण चौपाई जाप करते ही मनोकामना होगी पूरी
सिय राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।
जेहि विधि होई नाथ हित मोरा
करो सुवेगि दास मंह तोरा।।
सो तुम्ह जानहु अंतरजामी
पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी॥
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई
जब तव सुमिरन भजन न होई॥
पवन तनय बल पवन समाना
बुद्धि विवेक बिग्यान निधाना।।
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति
सब तजि भजनु करौं दिन राती॥
जा पर कृपा राम की होई,
ता पर कृपा करे सब को।।
कहो कहा लगी नाम बड़ाई
राम न सकहि नाम गुण गाई ॥
राम मेरे राम
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई
गोपद सिंधु अनल सितलाई॥
सुनहि विमुक्त बिरत अरु विषई
लहहि भगति गति संपत्ति न।।
मंगल भवन अमंगल हारी
उमा सहित जपत त्रिपुरारी।।
मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी ।।
धर्म न दूसर सत्य समाना ,
आगम निगम पुराण बखाना।।
सो तुम्ह जानहु अंतरजामी
पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी॥
कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई
जब तव सुमिरन भजन न होई॥